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नया साल और हमारे संकल्प -07-Jan-2022

नया साल और हमारे संकल


आज सुबह खूब सारा कोहरा छाया हुआ था । मन किया कि आज घूमने नहीं जायें , सर्दी बहुत है । सर्दियों में  रजाई में जो आनंद है वह पार्क में घुमाई में कहाँ ? और आनंद लेने के लिए हमने रजाई जैसे ही अपने चारों ओर लिपटाई , वैसे ही श्रीमती जी की कड़कड़ाती हुई आवाज आई "अब तो उठ जा ओ हरजाई 
देख, बाहर धूप है निकल आई 
क्या करनी नहीं आज  घुमाई 
फिर क्यों लपेट रहे हो रजाई ? 

सुबह सुबह श्रीमती जी की अमृत तुल्य वाणी सुनकर सब पति लोग धन्य हो जाते हैं । ऐसी मीठी बोली सुनकर किसकी मजाल है जो पार्क में घूमने जाने के लिए मना कर दे । मरता क्या न करता की तर्ज पर हम भी पहलवानों की तरह रजाई फेंककर खड़े हो गये और नित्य क्रिया कर्म करके पार्क में आ गये । 

सामने ही हंसमुख लाल जी मिल गये । यथा नाम तथा गुण । हरदम हंसते हंसाते रहने वाले हंसमुख लाल जी हमारे पैंटिया यार मतलब जबसे हमने पैंट पहनना शुरू किया है तबसे हमारे खास यार हैं ,हमें देखते ही गुलाब की तरह खिल उठे । बांहें फैलाकर हमें "हग" करने के लिए आगे बढ़े । हमने हाथ के इशारे साथ उन्हें रोका "हंसमुख लाल जी वैक्सीन लग गई है इसका मतलब यह नहीं है कि इससे कोरोना डरकर भाग गया है । थोड़ी सोशल डिस्टेंसिंग तो मेन्टेन कीजिए" । 

"सॉरी भाईसाहब । आपको देखकर खुशी में पागल हो गया था मैं । इसलिए सोशल डिस्टेंसिंग , कोरोना सब कुछ भूल गया था । सबसे पहले तो आपको नये साल की राम राम " 

"राम राम जी राम राम । और सुनाओ , नये साल पर क्या नया करने जा रहे हो" ? हमने बात आगे बढाई ।
"सब कुछ नया करने जा रहे हैं जी । पुराना कुछ नहीं रहेगा । हम सबने नये साल में नये नये संकल्प ले लिए हैं । बस, ये समझो कि सब कुछ नया हो ही गया" । खुशी से उछलते हुए हंसमुख लाल जी बोले । आभा से उनका मुखड़ा दमक रहा था । 
"क्या क्या नये संकल्प ले लिए हैं आपने" ? हमने उत्सुकता से पूछा ।
"बहुत सारे लिये हैं जी । एक हो तो बताऊँ, भाईसाहब" 
"अच्छा ! एक एक कर बताते जाओ" । हम भी उन्हें छोड़ने वाले नहीं थे । 
"पहला तो यही कि सुबह जल्दी जगकर मॉर्निंग वॉक पर जाएंगे । दूसरा .... " 
"रुको रुको । धीरे धीरे चलो यार । तुम तो सुपर सोनिक जेट की तरह उड़ रहे हो । पैदल पैदल चलो । ये बताओ पहला संकल्प मॉर्निंग वॉक का है ना " ? 
"हां जी भाईसाहब" 
"आज तो सात जनवरी है । पिछले छ: दिनों से तो आप दिखाई नहीं दिये थे पार्क में । फिर कहाँ जाते थे मॉर्निंग वॉक के लिए" ?

इस पर हंसमुख लाल जी झेंप गये । उनका झूठ पकड़ा गया । झूठ पकड़े जाने पर ही ही करके हंसने लगे । हमारे देश के लोगों की ये आदत है कि जब उनका झूठ पकड़ में आ जाता है तब वे ऐसे ही ही ही करके दांत दिखा देते हैं । 
झेंप मिटाते हुए वे कहने लगे 
"सैर तो की थी हमने मगर पार्क में नहीं की । इतनी सर्दी में बीमार होने का अंदेशा था भाईसाहब । इसलिए रजाई में लेटे लेटे ही सारे पार्कों की सैर कर आते थे । इस तरह छ: दिन गुजर गये । आज सर्दी कुछ कम है इसलिए आज पार्क में आ गया" । उन्होंने फिर से अपने दांत दिखा दिये । 
"आज तो और दिनों से ज्यादा सर्दी है हंसमुख लाल जी । हमें तो दाल में कुछ काला लग रहा है । कुछ और ही बात लग रही है यहां आने की । सच सच बता दो , हमसे क्या छुपाना । आखिर आपके पैंटिया यार जो हैं । आपकी रग रग से वाकिफ हैं हम" ।
"अरे नहीं भाईसाहब , एकदम सच बता रहे हैं । और कौन सी बात हो सकती है भला" ? 
"अभी बताते हैं । वो जरा पीछे मुड़कर देखो" । 
"पीछे क्या है , भाईसा.." ।वे पूरा वाक्य भी नहीं कर पाये थे । बाकी के शब्द गले में ही फंसे रह गए । उनके पीछे छमिया भाभी खड़ी थीं । 
"तो ये कारण है आपका आज मॉर्निंग वॉक के लिए आने का" । हमने मुस्कुराते हुये कहा । 
हमारी बात पर वे बुरी तरह से झेंप गये जैसे चोरी करते रंगे हाथों पकड़े गये हों । इतने में छमिया भाभी भी वॉक करते करते नजदीक आ गई थी । हमें देखकर बोली 
"नमस्ते भाईसाहब । नमस्ते हंसमुख लाल जी । कैसे हैं आप लोग" ? 
"बहुत बढिया" । दोनों एक साथ बोले । 
अचानक छमिया भाभी बोल पड़ीं जैसे उन्हें कुछ याद आया हो । "अरे हंसमुख लाल जी , आप यहीं हैं । मैं तो आपको कब से ढूंढ रही हूँ" । छमिया भाभी ने बेतकल्लुफी के साथ कहा । 
हंसमुख लाल जी का रोम रोम प्रसन्न हो गया । मन में लड्डू फूटने लगे "छमिया भाभी उन्हें ढ़ूंढ रही हैं, यह बात ही उनके लिये किसी वरदान से कम नहीं है । उन्होंने हमें ऐसे देखा जैसे कह रहे हों "देखा, छमिया भाभी की निगाहों में कितनी इज्जत है हमारी और वे हमें कितना चाहती हैं" ।  प्रकट में बोले "हुक्म करिये भाभी, क्या करना है, बताइये ? हम तो आपकी सेवा के लिए हरदम तैयार रहते हैं " । उन्होंने हड़बड़ी में ये सब कह डाला । 
"अरे , मेरे जूते का तस्मा खुल गया था अभी वॉक करते करते ।  इसे बांध दो न प्लीज" ? छमिया भाभी ने बड़े प्यार और अपनापन से कहा । 

अब हंसमुख लाल जी का चेहरा देखने लायक था । ना खाते बन रहा था ना उगलते । गले में फंसी हड्डी की तरह भाभी की बात उनके दिल दिमाग में अटक गई थी । छमिया भाभी से उन्हें ऐसी उम्मीद नहीं थी । ऐसा नहीं है कि भाभी के जूते के तस्मे बांधने में हंसमुख लाल जी को कोई परेशानी थी । इस काम को करने में तो उन्हें बहुत मजा आता था । तस्मे बांधने के नाम पर ही सही उन्हें जूते छूने को तो मिल जाया करते थे । इसी बात पर वे दिन भर खुश रहते थे । मगर भाभी ने थोड़ी जल्दबाजी कर दी और मेरे सामने ही उन्हें तस्मे बांधने के लिए कह दिया । यह भी कोई बात हुई ? अकेले में बंधवा लेती तो उन्हें अच्छा लगता मगर यूं सबके सामने ? अब वे उन्हें ना तो मना कर सकते थे और ना ही मेरे सामने तस्मे बांध सकते थे । बड़ी दुविधा में डाल दिया था छमिया भाभी ने उन्हें । 

उनकी दुविधा हम समझ गये । आखिर हमारे मित्र हैं हंसमुख लाल जी । कष्ट में यदि मित्र ही काम ना आये तो फिर ऐसा मित्र किस काम का ? मित्रता की लाज रखने के लिए हमें उनकी इज्ज़त की रक्षा तो करनी ही थी । इसलिए हमने उन्हें शर्मसार होने से बचाने के उद्देश्य से कहा 
"अरे, मैं तो भूल ही गया । मैं एक मिनट में आता हूं । एक काम अचानक से याद आ गया है । आप दोनों जब तक जूते के तस्मे बांधो और बंधवाओ,  मैं आता हूँ अभी" । इतना कहकर हम वहां से निकल लिए । 
हंसमुख लाल जी ने कृतज्ञता से  हमारी ओर देखा । हमने भी आंखों के इशारे से कह दिया "जा बेटा, खुश रह" । 

जब हम वापस आये तो उनकी झेंप मिटाने के लिए विषय बदलना जरूरी था । इसलिए फिर से मूल विषय पर आ गये । हमने पूछा "नये साल में और क्या क्या संकल्प लिये" ? 

उन्हें भी थोड़ा चैन आया विषय बदलने से । वे बड़े शौक से बताने लगे । "दूसरा संकल्प यह है कि रात को खाना नहीं खाकर केवल फल फ्रूट खायेंगे और बस दूध लेंगे" । 

"बहुत गजब का संकल्प है यह तो । एकदम क्रांतिकारी । आज तक वालों की तरह से क्रांतिकारी , अति क्रांतिकारी । भारत में तो लोग जितने भूख से नहीं मरते उससे ज्यादा तो ज्यादा खाने से यानी कि हिन्दी में बोलें तो 'ओवर ईटिंग' से मरते हैं । डायबिटीज, हृदय रोग , एसिडिटी, लीवर की बीमारी इसी ओवर ईटिंग से होती है । इस संकल्प से अब एक समय रोटियां खाने को नहीं मिलेंगी आपको । इससे आपका स्वास्थ्य बना रहेगा । पेट भी लिमिट में रहेगा । अतिक्रमण करके बहुत बाहर आ गया है यह । अच्छा एक बात बताओ , 'कल रात को क्या बनाया था भाभी ने खाने में" ? 
"आलू के परांठे" । वे तपाक से बोले । 
"पर तुमने तो खाये नहीं होंगे ना । रात को खाना बंद कर रखा है न नये साल से" । हमने उन्हें कुरेदा । 
"आप भी कमाल करते हो भाईसाहब ? खाये कैसे नहीं । चार परांठे खाये दबा के । आप तो जानते ही हैं कि मुझे आलू के परांठे कितने पसंद हैं । मैंने तो कहकर बनवाये थे ये आलू के परांठे, फिर खाते क्यों नहीं" ? उन्होंने असलियत उगल दी । 
"पर आपने तो संकल्प लिया था कि रात में ..." । हमने गहरी नजरों से उन्हें देखा । 
"हां, संकल्प लिया था । हम उस पर अभी भी डटे हुए हैं । परांठे कोई खाने में थोड़े ही आते हैं । खाने में तो रोटियां आती हैं , आलू के परांठे नहीं । अब आप ही बताओ हमने संकल्प कहाँ तोड़ा" ? बड़ी ढिठाई से उन्होंने कहा ।
"फिर परांठे किस में आते हैं ? फ्रूट्स में " ? हमने व्यंग्य भरी नजरों से उन्हें घूरा ।
"कैसी बातें करते हो भाईसाहब ? परांठे तो स्पेशल डिश में आते हैं और मैंने स्पेशल डिश नहीं खाने का कोई संकल्प नहीं लिया था" । वे बड़ी कुटिलता से मुस्कुरा रहे थे । 

हमने उनके संकल्पों और उनके प्रयासों की भूरि भूरि प्रशंसा की । 
"ये दोनों तो कमाल के संकल्प हैं आपके । और आपके प्रयास तो अद्भुत हैं । पर एक बात बताओ, इनके अतिरिक्त और क्या क्या संकल्प लिये हैं" ? 
"शराब को हाथ नहीं लगाऊंगा" 
"अरे वाह ! ये हुई ना बात । मगर कल एक पार्टी में मैंने आपके हाथ में एक बोतल देखी थी । क्या वो कोका कोला की थी" ? 
मेरी बात पर वे बड़े जोर से हंसे । हंसते हंसते लोटपोट हो गए । बोले 
"कैसी बच्चों जैसी बातें करते हो भाईसाहब ? मैं कोई बच्चा तो हूं नहीं जो कोक पीऊंगा । 'वोदका' से नीचे तो अपुन उतरते ही नहीं हैं" । वे गर्व से बोले 
"मगर वो संकल्प" ? 
"संकल्प अपनी जगह पर कायम है भाईसाहब । हमने संकल्प के साथ पाकिस्तानी बॉलर्स की तरह से कोई छेड़छाड़ नहीं की है आज तक , हां" 
"मगर हमने तो हाथ में बोतल देखी थी आपके" । हमारा प्रश्न बरकरार था । 
"बोतल ही तो देखी थी ना हाथ में , शराब तो नहीं ना । शराब को हाथ नहीं लगाने का संकल्प लिया था , बोतल को नहीं । इसलिए बोतल हाथ में और शराब मुंह में । संकल्प अपनी जगह और शराब अपनी जगह" । 

मान गये कि हंसमुख लाल जी कितने सीरियस हैं अपने संकल्पों के प्रति । हमने उनका लोहा मान लिया । और पूछा "और भी कोई संकल्प बचा है क्या" ? 
वे सोचते हुए बोले " हां , अभी तो एक संकल्प और शेष है "। 
"वो क्या है ? उसे भी बता दो "
"वो है सोशल मीडिया से दूरी का । मैं पूरे साल सोशल मीडिया यानि  व्हाट्सएप, फेसबुक, यूट्यूब, ट्विटर, इंस्टाग्राम से दूर रहूंगा" । उनकी आंखें चमकने लगीं । 
"ये हुई ना बात ! वो मारा छक्का । ये जबरदस्त संकल्प लिया है आपने । अद्भुत। और भी कोई संकल्प हो तो बता दो" । 
"अरे नहीं भाईसाहब , ये संकल्प ही पूरे हो जायें तो बहुत है । इस साल अगर ये संकल्प पूरे हो गये तो अगले साल और ज्यादा संकल्प ले लूंगा" । पीछा छुड़ाने के अंदाज में वे बोले ।
मैं कुछ आगे बोलता इससे पहले खैरातीलाल जी आ गये । खैरातीलाल जी को आप लोग भूल गए शायद । हमारे पड़ोसी हैं खैरातीलाल जी । हमारे गांव में एक सरपंच खानदान है । जनता उस खानदान को पीढी दर पीढी सरपंच बनाती आई है । खैरातीलाल जी हमारे गांव के उसी सरपंच खानदान के टुकडों पर पलने वाले पत्तलकार रहे हैं । ये उनकी प्रशंसा वाले समाचार लिखते थे और ईनाम पाते थे ।हम इन्हें प्यार और इज्जत से "पत्तलकार" कहकर बुलाते हैं । आजकल हमारे मौहल्ले में ही रहते हैं ये पर आज भी उनके फेंके गये टुकड़ों का हक अदा कर रहे हैं । पत्रकारिता के नाम पर बरसों से ऐजेंडा चला रहे हैं और बेशर्मी के एक से बढकर एक नये नये कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं । खैरातीलाल जी आज बहुत गुस्से में थे । जोर जोर से भौंकते हुए आ रहे थे वे । उनके निशाने पर हम थे या हंसमुख लाल जी, पता नहीं , मगर वे आ इधर ही रहे थे । 

पास आकर वे कहने लगे "तेरी हिम्मत कैसे हुई वो वीडियो डालने की ? साले , तेरी औकात ही क्या है ? तू समझता क्या है अपने आपको ? ऐसे ऐसे वीडियो फेसबुक पर डालकर हमारे मालिक की खिल्ली उड़ाता है ? खून पी जाएंगे तेरा । तूने समझ क्या रखा है हमें" । 

उनका रौद्र रूप देखकर हमारे होश फाख्ता हो गए । एक पत्रकार होकर भी इतनी असहिष्णुता , गाली गलौच ?  टेलीविजन पर तो उनको हमने "अभिव्यक्ति की आजादी" पर ज्ञान देते हुए , "लोकतंत्र खतरे में आ गया है" विषय पर विधवा विलाप करते हुये, "तानाशाही" वाले मुद्दे पर सिर के बाल नोंचते हुये और "देशद्रोहियों" की वकालत करते हुए बहुत बार सुना देखा था । मगर यहां तो ये जनाब हंसमुख लाल जी की मां बहन एक कर रहे थे । खुद ही बोले जा रहे थे और किसी को बोलने का मौका ही नहीं दे रहे थे । खुद ही तानाशाह बने हुये थे । हमें यकीन नहीं हुआ कि ये वही खैराती लाल हैं जो "प्राइम टाइम" में बहुत ज्ञान बांटते हैं । वहां पर तो ये बड़े मासूम , सभ्य, और संस्कारी नजर आते हैं मगर इनका तो असली रूप कुछ अलग ही है । असली रूप है असहिष्णु, तानाशाह, चापलूस, पैसे के लिये दीन ईमान बेचने वाला, पत्तलकार , मालिक के सामने दुम हिलाने वाला । अब  जो सामने है उसे झुठलाया तो नहीं जा सकता है ना । उनका रौद्र रूप  देखकर हमने कहा 
"इतना शोर क्यों मचा रहे हो खैरातीलाल जी ? आखिर बात क्या है" ? 
"पूछो ही मत भाईसाहब । हंसमुख लाल जी ने हमारे "मालिक" का वीडियो फेसबुक पर डाल दिया कल"  । 
"मालिक ? कौन मालिक ? आजकल तो बंधुआ मजदूरी तो रही नहीं । फिर ये मालिक कहाँ से आ गये" ? 
"हमारे सरपंच खानदान के इकलौते वारिस हैं हमारे मालिक । आप सब जानते हैं उनको, नाम बताने की आवश्यकता नहीं है । पर देखो, हंसमुख लाल जी ने  एक वीडियो बनाकर फेसबुक पर डाल दिया है । इससे हमारे मालिक की इज्ज़त धूल में मिल रही है । इससे हम बहुत गुस्से में हैं" । 
"असंभव । हंसमुख लाल जी ऐसा कर ही नहीं सकते हैं । तुम्हारे मालिक को ये क्या जानें ?  उन्होने तो नये साल पर संकल्प ले लिया है सोशल मीडिया से दूर रहने का । इसलिए अब वे तो सोशल मीडिया से दूर ही रहते हैं ।  आपको कोई गलतफहमी हो गई है" । हमने उन्हें समझाने की कोशिश की । 
"हमसे कोई गलतफहमी नहीं हुई है । आप चाहे अपनी तसल्ली के लिए हंसमुख लाल जी से पूछ लीजिए" । वे आशस्वत भाव से बोले 
हमने हंसमुख लाल जी से इस पूरे माजरे के बारे में पूछा तो वे कहने लगे 
"हमारे एक पोता हुआ है भाईसाहब । बड़ा प्यारा बच्चा है , एकदम मासूम । हम उस पोते का रोज एक वीडियो बनाकर फेसबुक पर अपलोड करते हैं और नीचे लिखते हैं " हमारे पप्पू का आज का वीडियो"  । बस , ये खैरातीलाल जी उसी वीडियो को देखकर भड़क रहे हैं और कह रहे हैं कि हमारे मालिक  का वीडियो मत बनाओ । इनके मालिक के बारे में सोचने की किसको पड़ी है । हम तो अपने पोते के साथ मस्ती करते हैं । इनको मिर्ची क्यों लगती है ? अब आप ही बताओ भाईसाहब कि हम अपने पोते का वीडियो भी नहीं बनायें ? उसे नहीं डालें फेसबुक पर " ? 
हमने खैरातीलाल जी से पूछा "तुम्हें क्या आपत्ति है इस वीडियो से खैरातीलाल जी " ? 
"आपत्ति ही आपत्ति है, भाईसाहब । सबसे बड़ी आपत्ति तो यह है कि इन्होंने वीडियो में "पप्पू" नाम क्यों लिखा ? बस, इसी से ही आपत्ति है"  । 
"कोई अपने बच्चे का नाम क्या रखे क्या नहीं , क्या तुम तय करोगे ? ये लोकतंत्र है यहां सबको आजादी है । जनता जनार्दन है , वह जो चाहे नाम रखे , इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए" ।

"कैसी जनता और कौन जनार्दन ? जो हम चाहेंगे वही होगा । हम लोग ही आज तक सरपंच बनवाते आये हैं । आगे भी हम ही बनवाएंगे । देख लेना एक दिन हम हमारे मालिक को फिर से सरपंच बनवायेंगे । येन केन प्रकारेण "। 
"पर आप तो पत्रकार हैं और पत्रकार जनता के साथ होता है किसी मालिक के साथ नहीं । यदि आप अपने मालिक के पक्ष में हवा बनाना चाहते हो तो पहले ये पत्रकारिता छोड़ो । किसी राजनैतिक दल में शामिल हो जाओ फिर खूब हवा बनाओ "। 

खैरातीलाल जी कहने लगे "हम तो बरसों से यही करते आ रहे हैं , हमारा कुछ बिगड़ा क्या ? और आगे भी यही काम करते रहेंगे" ।
हमने इस फालतू की बहस से बचने के लिए हंसमुख लाल जी से कहा "आपने तो संकल्प लिया था न कि  सोशल मीडिया से दूर रहने का । फिर ये वीडियो "? 

हंसमुख लाल जी ने कहा " अपने पोते का ही तो वीडियो बनाकर  डाला है । यह हमारा पारिवारिक मामला है कोई सोशल मीडिया में शामिल थोड़ी न है" ? 
हमने खैरातीलाल जी को वहां से डांट डपट खिलाकर भगा दिया । बेशर्म कहीं का । जा जाकर वापस आ रहा था । शायद नमक का कर्ज उतार रहा था । 

इतने में हंसमुख लाल जी ने पूछ लिया । "आपने भी तो संकल्प लिये होंगे, भाईसाहब ! उन्हें भी बताओ न "

हमने कहा कि हम तो एक छोटे से आदमी हैं । हम क्या संकल्प लेंगे । वर्ष 2022 , फरवरी में हमारी बिटिया की शादी है । 31 अगस्त को सेवानिवृत्ति है । हमने तो यही संकल्प लिया है कि इस कोरोना के बीच बिटिया की शादी बढिया सी हो जाये । हमारी सेवानिवृत्ति शांति पूर्वक हो जाये बिना कोई दाग धब्बों के । बस, यही संकल्प लिया है । सेवानिवृत्ति के बाद ठाले बैठे लेखन का ही काम करेंगे और समाज को दिशा देने का प्रयास करेंगे । खुशहाल जिंदगी जिएंगे । लोगों को हंसायेंगे, गुदगुदायेंगे । बस, और क्या ? 

हरिशंकर गोयल "हरि"
7.1.22 

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8 Comments

Sudhanshu pabdey

10-Jan-2022 09:42 PM

Very nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

10-Jan-2022 10:09 PM

धन्यवाद जी

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Seema Priyadarshini sahay

07-Jan-2022 11:11 PM

बहुत ही खूबसूरत

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Hari Shanker Goyal "Hari"

08-Jan-2022 12:25 AM

धन्यवाद मैम

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Swati chourasia

07-Jan-2022 11:42 AM

Beautifully penned 👌

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Hari Shanker Goyal "Hari"

08-Jan-2022 12:24 AM

धन्यवाद मैम

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